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रविवार, 18 जुलाई 2021

मॉडर्न हिस्ट्री | ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के शासक | प्लासी का युद्ध | बक्सर का युद्ध

भारत में अंग्रेजों ने सबसे पहले राजनीतिक सत्ता बंगाल में हासिल की।

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यह सत्ता अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब से प्लासी के युद्ध (1757) और बक्सर के युद्ध (1764) के माध्यम से हासिल की।

बंगाल की पृष्ठभूमि

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1701 में औरंगजेब ने मुर्शिद कुली खां बंगाल का सूबेदार बनाया था। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुर्शीदकुली खां ने स्वयं को बंगाल का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया इस प्रकार मुर्शिद कुली खां पहला शासक था जिसके नेतृत्व मैं बंगाल पूर्व स्वतंत्र स्वतंत्र राज्य बन गया।

मुर्शीदकुली खां ने बंगाल की राजधानी ढाका से हटाकर मुर्शिदाबाद मे स्थापित की।

मुर्शिद कुली खां ने बंगाल में सुधार किया और नई भूराजस्व प्रणाली स्थापित की। इसके लिए उसने जमीदारी पर आधारित नए कुलीन वर्ग का गठन किया अर्थात एक नए जमीदार वर्ग का गठन किया और उसकी सहायता से बंगाल में भूराजस्व व्यवस्था (land revenue system) के अंतर्गत इजारेदारी प्रथा को बढ़ावा दिया और भूराजस्व की वसूली कराई। 

इजारेदारी प्रथा:- जब किसानों से कर भूराजस्व वसूलने हेतु बिचौलियों का इस्तेमाल किया जाता है तो उसको इजारेदारी प्रथा कहते हैं।

नोट:- कालांतर में 1793 नए कार्नवालिस ने भू राजस्व की वसूली के लिए स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था का गठन किया तो इस व्यवस्था में जिन जमीदारों को भुमि का स्वामी का स्वामी बनाया गया वास्तव में ये वही बंगाल के जमीदार थे।

मुर्शिद कुली खां के उत्तराधिकारी सुजाउद्दीन - सरफराज खां - अलीवर्दी खां के समय में बंगाल काफी संपन्न हो गया। इसका लाभ उठाकर यूरोपीय कंपनियों अर्थात अंग्रेजों, फ्रांसीसीयों, डचो ने बंगाल में जगह-जगह अपनी व्यापारी बस्तियां स्थापित कर ली जिनमें 'हुगली' सर्वाधिक महत्वपूर्ण बंदरगाह था।

अलीवर्दी खां बंगाल का अंतिम शक्तिशाली शासक था जिसने यूरोपीय कंपनियों पर नियंत्रण बनाए रखा और युद्ध की स्थिति पैदा नहीं होने दी। इसने कलकत्ता (अंग्रेज) और चंद्र नगर (फ्रेंच) की यूरोपीय बस्तियों की किलेबंदी का कामयाबीपूर्वक विरोध किया था।

"यदि इन्हें ना छेड़ा जाए तो यह शहद देंगी, और यदि छेड़ा जाए तो काट-काट कर मार डालेंगी"

अलीवर्दी खां ने इस प्रकार यूरोपीय कंपनियों की मधुमक्खियों से तुलना की ।

सिराजुद्दौला (अलीवर्दी खां का पोता)- उत्तराधिकारी

  • अप्रैल 1756 में शासक बना।
  • इसी के समय प्लासी का युद्ध हुआ।

प्लासी के युद्ध की पृष्ठभूमि

बंगाल की गद्दी के लिए सिराज के तीन प्रतिद्वदी थे-

1.    शौकत जंग (चचेरे भाई)- मार दिया गया
2.   घसीटी बेगम (मौसी)- जेल में बंद कर दी गई।
3.   मीरजाफर (सेनापति)- हटाकर मीरमदान को सेनापति बना दिया गया।

ये तीनों अंग्रेजों से मिलकर सिराज के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे थे।

सिराज ने मीरजाफर को हटाकर 'मीरमदान' को सेनापति बना दिया।

सिराजुद्दौला का अंग्रेजों के साथ तीन प्रमुख मुद्दों पर मतभेद बढ़ता गया।

1.    अंग्रेजों द्वारा नवाब के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों को बढ़ावा देना।
2.    नवाब की अनुमति के बिना फोर्ट विलियम (कलकत्ता की व्यापारिक बस्ती) की किलेबंदी को मजबूत बनाना।
3.    1717 में मुगलशासक फर्रुखशियर (घृणित कायर) द्वारा अंग्रेजों को दिए गए सीमा शुल्क मुफ्त व्यापार के अधिकार पत्र (दस्तक) का दुरुपयोग करना। दस्तक कंपनी को दिया गया था लेकिन कंपनी के निजी कर्मचारी दस्तक का दुरुपयोग कर रहे थे। इससे नवाब को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा था।

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अंग्रेजों से सिराज ने युद्ध करने की ठान ली। सिराज के खिलाफ अंग्रेजों का मुख्य मुहरा मीरजाफर बना जिसे हटाकर सिराज ने मीरमदान को सेनापति बनाया था। इसने अंग्रेजों से गुप्त संधि की और सिराज को धोखा दिया।

उपरोक्त कारणों के आधार पर सिराज ने कलकत्ता पर आक्रमण करके 20 जून 1756 को फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया।

कालकोठरी त्रासदी 20-21 जून 1756 Black Hole Tragedy:

फोर्ट विलियम पर आक्रमण के दौरान सिराज ने 446 कैदियों को बंदी बना लिया जिसमें कुछ स्त्रियां और बच्चे भी थे। इन सभी बंदियों को एक छोटे से घुटनयुक्त कमरे में बंद कर दिया। 21 जून 1756 को प्रातः काल तक कमरे में सिर्फ 21 व्यक्ति ही जीवित बचे थे जिसमें उस घटना की जानकारी देने वाला अंग्रेज अधिकारी 'हॉलवेल' भी शामिल था। इतिहास में इस घटना को 'कालकोठरी त्रासदी' नाम दिया गया।

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इस घटना के बाद कलकत्ता पर पुनः अधिकार करने के लिए अंग्रेजों ने मद्रास से लॉर्ड क्लाइव के नेतृत्व में एक सैन्य अभियान भेजा।

जब लॉर्ड क्लाइव ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया तो नवाब सिराजुद्दौला ने भयभीत होकर अपनी सुरक्षा के लिए 9 फरवरी 1757 को अंग्रेजों के साथ 'अलीनगर की संधि' कर ली। इसके तहत नवाब ने दस्तक के पहले जैसे उपयोग की इजाजत दे दी। 

इसके बाद लॉर्ड क्लाइव ने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली शासक बैठाने के लिए सिराज के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा, सिराज के विरोधियों में निम्न विरोधियों ने क्लाइव का साथ दिया -

  • मीर जाफर - पूर्व सेनापति
  • राय दुर्लभ - बंगाल का दीवान
  • जगत सेठ - बंगाल का व्यापारी

एक गुप्त समझौते के तहत तय हुआ कि एक छदम (केवल दिखाने के लिए) युद्ध लड़ा जाएगा। युद्ध के बाद सिराज को हटाकर मीरजाफर को बंगाल का नवाब बनाया जाएगा।

23 जून 1757 का प्लासी नामक स्थान पर नदिया जिला, भागीरथी नदी के तट पर अंग्रेज और नवाब के बीच युद्ध हुआ।

अंग्रेजों का नेतृत्व लॉर्ड क्लाइव और सिराजुद्दौला की सेना का नेतृत्व मीरजाफर, यारलतीफ और रायदुर्लभ ने किया।

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वास्तव में यह एक छदम युद्ध था। नवाबों की ओर से तीनों ने एक भी गोला नहीं दागा और खड़े होकर देखते रहे। परिणाम स्वरूप सिराजुद्दौला मारा गया।

प्लासी का युद्ध अंग्रेजों ने युद्धकौशल से नहीं जीता था बल्कि यह तो केवल एक षड्यंत्र था। अंग्रेजों के युद्धकौशल का परिचायक नहीं था।

"प्लासी एक सौदा था जिसमें मीरजाफर और बंगाल के धनी लोगों ने नवाब को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया था।" – K.M. पनिक्कर

प्लासी के युद्ध के बाद भारत के सबसे समृद्ध प्रांत को दस्तक के दुरुपयोग, निजी व्यापार और रूस के माध्यम से अंग्रेजों ने जी भर कर लूटा।

मीरजाफर (1757-1760)

अंग्रेज किंग मेकर की भूमिका में आ गए और 30 जून 1757 को मीरजाफर को नबाब बनाया।

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इसके बदले में मीरजाफर ने कंपनी को 24 परगना की जमीदारी (भूराजस्व वसूलने का अधिकार) दे दी और साथ ही 37 लाख पॉन्ड युद्ध हरजाने के रूप में दिया।

मीरजाफर ने यद्यपि 24 परगना की जमीदारी प्रदान करके और बंगाल की सभी फ्रांसीसी बस्तियों अंग्रेजों के हवाले कर उन्हें खुश करने का प्रयास किया लेकिन प्लासी के बाद किंग मेकर की भूमिका में आने वाले अंग्रेजों का लालच इतना बढ़ता गया कि उसे बयां ना कर पाने के कारण मीरजाफर ने अपने दामाद मीरकासिम के पक्ष में 1760 में सिंहासन व्याग दिया।

मीरकासिम (1760-1763)

अलीवर्दी खां के उत्तराधिकारीयों में मीरकासिम सबसे योग्यता था।
अंग्रेजों को नियंत्रित करने के लिए मीरकासिम ने चार कदम उठाए।

1.    अंग्रेजों से दूरी बनाने के लिए अपनी राजधानी को 'मुर्शिदाबाद' से 'मुंगेर' स्थानांतरित किया।
2.   अपने सैनिकों को यूरोपीय ढंग से प्रशिक्षित किया।
3.    मुंगेर में तोपों और तोडेदार बंदूकों के निर्माण हेतु कारखाना स्थापित किया।
4.    अंग्रेजों द्वारा दस्तक (1717 ई. में फर्रूखशियर द्वारा जारी व्यापारीक फरमान) के दुरुपयोग को रोकने के लिए बंगाल में आंतरिक व्यापार से सभी शुल्कों की समाप्ति कर दी। (अंग्रेजों के अलावा आम नागरिकों के लिए भी)

व्यापारीक चुंगी (शुल्क) समाप्त करने से इसका लाभ सभी भारतीयों को मिलने लगा लेकिन कासिम का यह कदम अंग्रेजों को रास नहीं आया, क्योंकि इसके पहले शुल्क मुक्त व्यापार का लाभ 1717 के फरमान के अनुसार केवल कंपनी को मिलता था अंग्रेजों ने इसे अपने विशेषाधिकार की अवहेलना के रूप में लिया और यही बक्सर के युद्ध (1764) की पृष्ठभूमि बनी।

अंग्रेजों ने 1763 में मीरकासिम को हटाकर पुनः मीरजाफर को नवाब बनाया। परिणामस्वरूप मीरकासिम ने अंग्रेजो के खिलाफ सैन्य गठबंधन का निर्माण किया जिसमें कासिम के अतिरिक्त 2 अन्य सेनापति थे।

1.    मुगल बादशाह शाह आलम - II
2.   अवध का नवाब शुजाउद्दौला

बक्सर का युद्ध

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बक्सर के युद्ध की जीत वास्तव में अंग्रेजों के युद्ध कौशल का परिचायक था। इसमें अंग्रेजों ने 3 सेनापतियों को एक साथ हराया था।

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इस प्रकार प्लासी ने बंगाल में अंग्रेजों की प्रभुता स्थापित की थी। बक्सर ने अंग्रेजों को "अखिल भारतीय शक्ति" के रूप में स्थापित किया क्योंकि अंग्रेजों ने मुगल बादशाह शाहआलम-II  को भी पराजित किया था।

बक्सर युद्ध (1764) के समय बंगाल का नवाब मीरजाफर था। 1765 में मीरजाफर की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने उसके पुत्र नजमुद्दोला को अपने संरक्षण में रखकर बंगाल का नवाब बनाया।

बंगाल में द्वैध शासन 1765 1772

मुगल प्रांतों में दो तरह के अधिकारी होते थे - 

1    सूबेदार - कानून व्यवस्था, सैनिक कार्य (निजामत का अधिकार)

2    दीवान - राजस्व वसूली और वित्त व्यवस्था

दोनों मुगल बादशाह के प्रति उत्तरदाई होते थे और एक दूसरे पर चेक-बैलेंस के माध्यम से नजर रखते थे।

1707 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात बंगाल स्वतंत्र हो गया और यह काम नवाब करने लगा।

बक्सर युद्ध (1764) में मुगल बादशाह को पराजित करने के बाद अंग्रेजों ने उसके साथ 12 अगस्त 1765 इलाहाबाद की प्रथम संधि की।

मुख्य बात- अंग्रेजों को मुगल बादशाह 26 लाख वार्षिक के बदले बंगाल, बिहार, ओड़िशा की दीवानी (राजस्व वसूलने का अधिकार) मिल गई।

इसके बाद कंपनी ने बंगाल के अल्प आयु नवाब को (निजामुद्दौला) 53 लाख रुपये देकर उससे बंगाल की सुबेदारी अर्थात निजामत का अधिकार भी प्राप्त कर लिया। अब बंगाल में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार कंपनी को मिल गया। उसने कानून व्यवस्था अपने हाथों में ले ली।

अब बंगाल में दीवानी और निजामत दोनों कंपनी के हाथों में था। कंपनी ने निजामत के लिए मोहम्मद रजा खां को नयाब सूबेदार नियुक्त किया और राजस्व वसूली के लिए तीन उपदीवान नियुक्त किये -

(a)- मुहम्मद रजा खां - बंगाल
(b)- राजा सिताब राय - बिहार
(c)- राय दुर्लभ - ओडिशा

इसके बाद से बंगाल में कानून व्यवस्था और दीवानी अंग्रेजों के हिसाब से चलती थी। केवल मुखौटा नवाब सहित भारतीयों को बना दिया गया था।

द्वैध शासन :-

इसकी शुरुआत बंगाल में 1765 में हुई। इस का जन्मदाता लॉर्ड क्लाइव था। इसका मूल तत्व यह था कि बंगाल में वास्तविक अधिकार तो कंपनी के हाथों में था लेकिन उत्तरदायित्व नवाब का था। कंपनी दीवानी और निजामत भारतीयों के माध्यम से करती थी जबकि वास्तविक अधिकार कंपनी के हाथों में था।

यानी एक तरफ विहीन अधिकार - कंपनी का, और दूसरी तरफ अधिकार विहीन उत्तरदायित्व - नवाब का

परिणाम

कंपनी ने बंगाल में कानून व्यवस्था में रुचि नहीं ली। उनकी नजर केवल राजस्व वसूली पर थी, परिणाम स्वरूप पूरे बंगाल में अराजकता और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। व्यापार वाणिज्य का पतन हुआ।

बंगाल का कपड़ा उद्योग चौपट हो गया। (केवल रेशम धागा के ऊपर जोर दिया गया ना कि कपड़ा पर)

किसानों ने अत्यधिक राजस्व वसूली के कारण खेती - किसानी छोड़ दिया। राजस्व वसूली के अधिकार की नीलामी होती थी, जो ज्यादा बोली लगाता था, (भारतीय ही होते थे) उन्हें अधिकार दे दिया जाता था और वे जबरन किसानों से अधिक भू-राजस्व वसूलते थे।

खेती - किसानी छोड़ने के कारण खाद्यान्न उत्पादन में भारी गिरावट आई। परिणाम स्वरूप 1770 में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ गया जिसमें 1 करोड़ आबादी भूखमरी की शिकार हो गई।

द्वैध शासन पर लॉर्ड कॉर्नवालिस ने इंग्लैंड की संसद में कहा कि - 

"दुनिया में कोई भी सरकार इतनी भ्रष्ट, विश्वासघाती और लोभी  ही नहीं हो सकती जितना भारत में कंपनी की सरकार।" (1765 - 1772 के काल के बारे में)

K. M. पनिककर ने द्वेध शासन अर्थात 1765 - 1772 के काल के बारे में कहा था कि - "यह डाकू राज्य का काल था।"

पर्सीवल स्पीयर - "बेशर्मी और लूट का काल"

लॉर्ड क्लाइव के प्रशासनिक सुधार

1758 में बंगाल का गवर्नर बनाया गया।

अंग्रेजों के भारतीयों से उपहार प्राप्ति पर लोग रोक लगा दी।

कंपनी के कर्मचारियों द्वारा निजी व्यापार हेतु दस्तक के दुरुपयोग पर रोक लगा दी।

1767 में अंग्रेज सैनिकों को दिए जाने वाले दौरे भत्ते पर रोक लगा दी। इसका अंग्रेज सैनिकों ने विरोध किया (विशेषकर इलाहाबाद और मुंगेर में) - इसको श्वेत विद्रोह संज्ञा प्रदान की गई।

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